जबलपुर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक दिन पूर्व पीएससी की भर्तियों में 27 के स्थान पर 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने का अंतरिम आदेश पारित किया था। इसके दूसरे दिन राज्य शासन की ओर से हाई कोर्ट में रीकॉल आवेदन प्रस्तुत करके मामले पर नए सिरे से सुनवाई की मांग कर दी गई। मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ 31 जनवरी को इस पर सुनवाई करेगी।
शासन की ओर से महाधिवक्ता शशांक शेखर व शासकीय अधिवक्ता हिमांशु मिश्रा बुधवार दोपहर 2.30 बजे हाई कोर्ट के समक्ष हाजिर हुए। उन्होंने पीएससी के 400 पदों पर भर्ती के मामले में मंगलवार को पारित आदेश को रीकॉल किए जाने पर बल दिया। बाकायदा कोर्ट में अर्जी पेश कर निवेदन किया गया कि राज्य शासन को नए सिरे से जवाब देने का अवसर देकर सुनवाई के बाद मैरिट के आधार पर आदेश सुनाया जाए। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए यह मांग मंजूर कर ली।
पहले 12 फरवरी को होनी थी सुनवाई
हाई कोर्ट ने 27 फीसदी आरक्षण पर रोक का अंतरिम आदेश देते हुए अगली सुनवाई 12 फरवरी तय की थी, लेकिन इस बीच राज्य की ओर से रीकॉल आवेदन पेश हो जाने के कारण 31 जनवरी को सुनवाई किए जाने की संशोधित व्यवस्था दे दी गई।
मंगलवार का आदेश स्वमेव निष्प्रभावी
मामला रीकॉल होने के साथ मंगलवार को पीएससी की भर्ती के सिलसिले में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर लगाई गई रोक स्वमेव निष्प्रभावी हो गई। इसके अलावा हाई कोर्ट ने इस सिलसिले में पीएससी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत सिंह से अंडरटेकिंग भी ले ली है। इससे साफ हो चुका है कि पीएससी की भर्ती प्रक्रिया पर फिलहाल यथास्थिति लागू रहेगी।
महाधिवक्ता व आरजी ऑफिस की भूमिका पर दागा सवाल
पिछड़ा वर्ग की ओर से पेश हुए अधिवक्ता रामेश्वर पी सिंह, विनायक शाह व उदय साहू ने इस मामले में महाधिवक्ता ऑफिस की भूमिका पर सवाल दागा। दलील दी गई कि एक तरफ तो राज्य सरकार ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया है, वहीं दूसरी तरफ महाधिवक्ता कार्यालय की ओर से इस मामले में समुचित गंभीरता नदारद रही। 10 माह बीतने के बाद भी जवाब तक नहीं दिया गया।
इसी रवैये के कारण कोर्ट ने स्टे ऑर्डर पारित कर दिया। यदि एजी ऑफिस की ओर से पर्याप्त गंभीरता बरती गई होती तो 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण पर रोक का अंतरिम आदेश पारित नहीं होता। इसी तरह 8 मार्च 2019 को 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण लागू होने के बावजूद अब तक हाई कोर्ट की भर्तियों में इसे लागू नहीं किया गया है। लिहाजा, रजिस्ट्रार जनरल से भी जवाब मांगा जाए। कोर्ट ने इसे रिकॉर्ड पर लेकर रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगा।